आज पवित्र अष्टमी के पावन पर्व पर आप सभी को ढ़ेरों शुभकामनाएं। अपनी सीरीज के अंतर्गत आज मैं आपको माँ दुर्गा की एक ऐसी शक्ति पीठ के दर्शन करवाने ले जाऊँगा जो दक्षिण भारत में चामुंडी पहाड़ी पर स्थित है और ये स्थान मैसूर शहर से करीब 13 किलोमीटर की दूरी पर है। जी हाँ मैं बात कर रहा हूं, माँ चामुंडेश्वरी शक्ति पीठ की।
करीब 1000 वर्ष पुराने इस मंदिर में कर्नाटक के लोगों की गहरी आस्था है मैसूर के राज परिवार में भी माँ चामुंडेश्वरी का विशेष स्थान है। विश्व प्रसिद्ध वार्षिक दशहरा पर्व पर निकलने वाली शोभा यात्रा में मुख्य सिंहासन पर माँ चामुंडेश्वरी ही विराजती हैं।
स्कन्द पुराण और दुर्गा सप्तशती में भी हमें इसका वर्णन मिलता है। कथा अनुसार माँ दुर्गा ने काली का रूप धर कर चण्ड और मुण्ड नामक दैत्यों का सर्वनाश किया था इसी कारण यहां उन्हें चामुंडा का नाम दिया गया। असुर महिषासुर का वध भी माँ दुर्गा ने किया था जिसके लिए निरंतर नौ दिनों तक युद्ध चला था और अंत में माँ ने महिषासुर का वध कर दिया था। इन्ही नौ दिनों को अब हम दुर्गा पूजा के रूप में मनाते हैं। यहाँ महिषासुर की एक विशाल मूर्ति भी लगी हुई है।
मैसूर शहर का नाम महिषासुर के नाम पर ही रखा गया था जो बदलते समय के साथ मैसूर और अब मैसूरु हो गया है।
माँ चामुंडेश्वरी के दर्शनों की आस कई वर्षों से थी आखिरकार फरवरी 2020 में माँ ने सुन ली और अपने दर्शनों का सौभाग्य प्रदान कर ही दिया।
मंदिर का विशाल गोपुरम इसकी विशालता का अनुभव करवाता है। द्रविड़ शैली में बना मंदिर अपनी भव्यता से भक्तों का मन मोह लेता है। गर्भ गृह में मुख्य मूर्ति अष्ट भुजा वाली है और भक्तों को निरंतर अपना आशीष प्रदान कर रही हैं। आज के इस शक्ति पीठ की यात्रा की सीरीज को आज मैं यहीं विराम दूँगा। कल राम नवमी का पावन पर्व है और इस अवसर पर मैं आपको अयोध्या जी ले कर चलूँगा।
आप सभी घर पर रहें सुरक्षित रहें यही माँ दुर्गा से प्रार्थना है। जय माता दी।