सबसे पहले बुद्ध पूर्णिमा के पावन अवसर पर आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं!! बुद्ध पूर्णिमा बैसाख के पूर्णिमा पर आती है, ऐसा मत है की आज ही के गौतम बुद्ध का जन्म हुआ था, उनको ज्ञान की प्राप्ति हुई थी और आज ही के दिन उन्हें महानिर्वाण भी प्राप्त हुआ था. महात्मा बुद्ध के अनुयायिओं के लिए ये दिन अत्यंत पवित्र है. हिन्दू चूँकि बुद्ध को विष्णु का अवतार मानते हैं इसीलिए हिन्दुओं के लिए भी ये दिन अत्यंत पुनीत है. विश्व के अनेक देश जो बुद्ध के अनुयायी हैं वहां भी इस पर्व को हर्षो उल्लास के साथ मनाया जाता है.
आज इस पावन दिन पर मैं आपको विश्व भर में भगवान् बुद्ध के सबसे पवित्र स्थान यानी कि “महाबोधि मंदिर” मैं ले कर चल रहा हूँ. इसी स्थान पर राजकुमार सिदार्थ को ज्ञान की प्राप्ति हुई थी और वे सिदार्थ से दार्शनिक, चिन्तक, समाज सुधारक और धर्म गुरु महात्मा बुद्ध के रूप में परिवर्तित हुए थे.
महात्मा बुद्ध ने अपनी शिक्षाओं से मानव जाति का बहुत कल्याण किया है. शांति का पाठ पढ़ाती उनकी शिक्षाएं आज के युग में भी उतनी ही प्रासंगिक हैं जितनी उस समय थीं. उनका एक वचन मैं अक्सर याद करता हूँ:- “हम जो सोचते हैं, वो बन जाते हैं” ये वाक्य बडा नहीं है, पर अत्यंत गूढ़ है. हिन्दू मान्यताओं के अनुसार बुद्ध को विष्णु जी का 9वां अवतार माना गया है. बोद्ध गया बिहार के गया जिले में स्थित है. गया स्टेशन से इसकी दूरी मात्र 14 किलोमीटर की है.
कपिलवस्तु के राजा शुद्धोधन और रानी महामाया के पुत्र राजकुमार सिदार्थ ने 29 वर्ष की आयु में अपने गृहस्थ जीवन और राजसी ठाठ बाठ को सदैव के लिए त्याग दिया और सत्य की खोज में निकल पड़े. 6ठी शताब्दी (इ.प) में बोधि वृक्ष के नीचे बैसाख मास की पूर्णिमा वाले दिन उनको ज्ञान की प्राप्ति हुई. ये बोधि वृक्ष आज भी यहाँ महात्मा बुद्ध की याद दिलवाता है. कहा जाता है की ये मौजूदा वृक्ष की 5वीं पीढ़ी है. 7 वीं शताब्दी (इ.प) में गुप्त वंश के राजाओं ने यहाँ एक विशाल मंदिर का निर्माण करवाया जिसका नाम रखा गया महाबोधि मंदिर. उसके बाद 1883 में अंग्रेजों ने और फिर वर्ष 1956 में भारत सरकार ने इस मंदिर का जीर्णोद्वार करवाया. वर्ष 2002 में UNESCO ने इसको विश्व विरासत यानि की वर्ल्ड हेरिटेज का ख़िताब दिया.
मंदिर के अन्दर बुद्ध की काले पत्थर से बनी एक विशाल प्रतिमा है जिसको सुनहेरी रंग से सुशोभित किया गया है. यहाँ बुद्ध पद्मासन की मुद्रा में बैठे दिखाई देते हैं. एक बार कोई इस तरफ देखे तो नज़र हटाना मुश्किल हो जाता है, ऐसा लगता है, बुद्ध मानो स्वयं भक्तों को शांति और ज्ञान के पाठ से कृतज्ञ कर रहे हैं. कहा जाता है के इस मूर्ति की स्थापना बंगाल के पाल वंश के राजाओं ने करवाई थी. मंदिर प्रांगण में वो सभी स्थानों को चिन्हित किया गया है जहाँ बुद्ध ने वास किया था. परिक्रमा स्थल पर भी महात्मा बुद्ध के कई सारे चिन्ह दिखाई पड़ते हैं. हम सभी भाग्यशाली हैं के महात्मा बुद्ध से जुड़े आठ सबसे पवित्र स्थलों में से सात हमारे देश की पुण्य भूमि पर हैं. महाबोधि मंदिर में विश्व भर श्रधालु आते हैं. ये स्थान ऐसे विदेशी मेहमानों से भरा रहता है, यहाँ आने वालों में सबसे ज्यादा बौध अनुयायी कम्बोडिया, थाईलैंड, मयन्मार, भूटान, श्रीलंका और जापान से आते हैं.
इसी के साथ आज के ब्लॉग को यहीं विराम देता हूँ. ब्लॉग पढने के लिए आप का बहुत बहुत धन्यवाद. जय हिन्द जय भारत.