आज, यानि कि, 12 सितंबर को सारागढ़ी युद्ध के 36 सिख रेजिमेंट के उन 21 सिख शूरवीरों को अगर नमन नही किया तो कुछ अधूरा सा रह जाएगा।
वर्ष 1897 में अफगानी कबीलों के 10000 लड़ाकों से भिड़ने और चुनौती देने के असाध्य कार्य को केवल और केवल ये निर्भीक और बहादुर सिपाही ही दे सकते थे। इन 21 सिख जवानों ने भारत माता की अस्मिता के लिए अपना सर्वोच्च बलिदान दे कर एक ऐसी मिसाल कायम की जो देश के इतिहास में कहीं देखने को नही मिलती।
पंजाब के फिरोज़पुर में इन शूरवीरों की स्मृति को समर्पित सारागढ़ी गुरुद्वारा बना हुआ जहां कुछ माह पूर्व ही नमन करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।
“केसरी” देख कर काफ़ी कुछ समझ आया पर सारागढ़ी युद्ध पर सम्पूर्ण ज्ञान मिला जब नेटफ्लिक्स पर सारागढ़ी के करीब 65 एपिसोड देखे। हवलदार ईशर सिंह और इनके 20 जांबाज़, शूरवीर सैनिकों को वीरता के अभूतपूर्व प्रदर्शन के लिए शत शत नमन।
चिड़ियों से मैं बाज़ तड़ाऊं, सवा लाख से एक लड़ाऊं, तभी गोबिंद सिंह नाम कहाऊँ।
वाहे गुरु जी का ख़ालसा, श्री वाहे गुरु जी की फ़तेह।।