आज उगते सूरज के साथ समय है नमन करने का शहीद कैप्टेन सौरभ कालिया को आज यानि 9 जून 1999 को पाकिस्तान ने उनके अंग भंग किए शरीर को भारत को सौंपा था।
1999 के कारगिल युद्ध में कैप्टेन सौरभ कालिया एक ऐसा नाम है, जिनसे सभी भारत वासी भली भांति परिचित हैं. इनके बलिदान के बाद ही इस युद्ध की गंभीरता का पता चला, ये भी पता चला की जिसे हम छोटी मोटी घुसपैठ मान रहे थे, दरअसल वो घुसपैठ नहीं थी बल्कि एक बहुत बड़ा षड्यंत्र था. जिसके पीछे पाकिस्तान के घिनोने इरादे छुपे थे।
मई 1999 के पहले दो सप्ताह बीत चुके थे और अभी भी हम सिर्फ आकलन कर रहे थे की हुआ क्या है. इसी दौरान, कारगिल के समीप काकसर की बजरंग पोस्ट पर तैनात 4 जाट रेजिमेंट के कैप्टेन सौरभ कालिया को अपने अन्य पांच साथियों सिपाही अर्जुन राम, भंवर लाल, भीखा राम, मूला राम व् नरेश सिंह को क्षेत्र का मुआयना करने के लिए भेजा गया ताकि स्थिति का सही सही आकलन किया जा सके। 15 मई को इन जांबाज़ सैनिकों ने सौरभ कालिया के नेतृत्व में अपनी कार्यवाही आरम्भ की पर इन सभी को पाकिस्तान रेंजर्स ने अपनी गिरफ्त में ले लिया क्योंकि वो पहले से ही हमारी चौकियों में आ कर बैठे हुए थे। 15 मई से 7 जून 1999 तक भारत माता के इन पुत्रों को जितनी शारीरिक और मानसिक प्रताड़ना दी जा सकती थी दी गयी, और फिर इनकी अंग भंग किए हुए शरीर भारत को आज के ही दिन यानि की 9 जून को सौंप दिए गए थे।
भारत के युद्ध इतिहास में ये सबसे क्रूरतम, जघन्य और सबसे घिनोना कृत्य था, जिसने पूरे देश में रोष फैला दिया। इनके बलिदान ने कारगिल युद्ध में नई जान फूंक दी और इस युद्ध में फ़तेह हासिल करना हमारे यौद्धाओं का एक मात्र लक्ष्य बन गया।
पिछले मास मुझे इस परिवार से मिलने का सौभाग्य मिला, कैप्टेन सौरभ कालिया के वीर माता पिता के चरणों को स्पर्श करने का मौका मिला जिन्होंने ऐसे वीर को जन्म दिया। उनके छोटे भाई से भी मुलाकात का अवसर प्राप्त हुआ।
हिमाचल प्रदेश के पालमपुर में इनका निवास है जहां एक कमरे को सौरभ की याद में म्यूजियम में बदल दिया गया है। कुछ चित्र आपके साथ सांझा कर रहा हूँ। यही प्रयास है की हम कभी भी अपने वीरों के बलिदान को भूले नहीं और सदा उन्हें याद करते रहें, उनको श्रद्धांजलि अर्पित करते रहें।
जय हिन्द।