आज एक ऐसे क्रांतिकारी की जन्म जयंती है, जिन्होंने देश को स्वतंत्र करवाने में एक अहम् भूमिका निभाई, इस महान पुण्यात्मा का नाम है, विनायक दामोदर सावरकर जिन्हें “वीर सावरकर” के नाम से भी भी कहा जाता है।
आज ही के दिन, यानि की 28 मई 1883 को भगुर ( नासिक) महाराष्ट्र में इनका जन्म हुआ था। आज इस पुण्य दिवस पर आपको मैं उनके जन्म स्थल के दर्शन करवाने ले चल रहा हूँ। वीर सावरकर एक मात्र ऐसे क्रांतिकारी थे, जिन्हें अंग्रेज सरकार ने एक नहीं दो बार आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। मैं सौभाग्यशाली हूँ कि मुझे भगुर की पुण्य भूमि पर नमन करने का अवसर मिल चुका है।
1857 की क्रांति के बाद देश में स्वाधीनता संग्राम का संघर्ष ठंडा हो चला था ये वीर सावरकर ही थे, जिन्होंने क्रांतिकारियों की ज्वलंत भावनाओं को सही दिशा दे कर अंग्रेजो के खिलाफ मोर्चा खोल दिया।
आज मुझे अंडमान की सेलुलर जेल का भी स्मरण हो रहा है जहां वर्षों तक सावरकर ने मानसिक व शारीरिक प्रताड़ना को झेला। जो लोग उनकी आलोचना करते हैं उन्हें एक बार तो यहां आ कर देखना चाहिए की कैसे सावरकर ने अपने जीवन के कई अमूल्य वर्ष असहनीय पीड़ा सहते हुए व्यतीत किए।
पोर्ट ब्लेयर की इस जेल को काला पानी भी कहा जाता है क्योंकि इसलिए भी कहा जाता है क्यूंकी इसकी दूरी भारत के मुख्य भूभाग से हजारों किलोमीटर की की है और वो भी चारो तरफ से पानी से घिरी हुई। पहली बात तो कोई भाग नहीं सकता और भाग भी गया तो भाग कर पानी मे कूदेगा और वैसे ही मर जाएगा। इस खौफ़नाक सोच के साथ इस जेल का निर्माण किया गया था। जेल के अन्दर तेल के कोहलू को दर्शाया गया है। जहां बैल की जगह कैदियों को जोता जाता था ताकि तेल निकाला जा सके। कोड़ो से रोजाना पीटना और भूखा रखना तो बहुत आम बात थी। जो जगह कल तक अंग्रेजी हुकूमत की क्रूरता का प्रतीक था वो आज भारतीय स्वतंत्र आंदोलन के शौर्य गाथा को समर्पित राष्ट्रीय समारक है।
सेल्यूलर जेल का निर्माण इस तरह से किया गया है की सारे सात ब्लॉक एक ही जगह आकर मिलते है जिससे कैदियों पर नज़र ज्यादा आसानी से रखी जा सके। एक कोठरी का साइज़ 13.60 फीट x 7.6 फीट है। इन कोठरियों का निर्माण इस तरह से किया गया था की कैदियो को आपस मे मेलजोल या बात करने का मौका ही ना मिले। बात करना तो दूर कैदी एक दूसरे की शक्ल तक नहीं देख सकते थे। यहाँ आज भी पग पग पर ऐसे निशान मिलते है जिन्हे देख कर भलि भांति अंदाज़ा लग जाता है की कितनी भयंकर प्रताड्ना दी होगी अंग्रेज़ो ने हमारे वीर और निर्भीक स्वतन्त्रता सेनानियों को। सेल्यूलर जेल को 1979 में राष्ट्रिय स्मारक घोषित किया गया.
अंदर प्रवेश करते ही दाहिने ओर एक संग्रहल्या बना हुआ है जिस में वीर क्रांतिकारियों का जीवन परिचय बताया गया है। थोड़ा आगे चलने पर बहुत सी कुर्सियां लगी हुई हें जहां रोज़ रात को लाइट एवं साउंड शो होता है जिसमे इस जेल और स्वतंत्र सैननियों के बारे में विस्तार से बताया जाता है। जैसे ही इसे पार करते हें उल्टे हाथ पर फांसी घर दिखाई देता है जहां आज भी फंदे लटकाएँ हुए हें ताकि ये आभास हो सके के कैसे कैदियों को फांसी पर लटकाया जाता था। फांसी घर के ठीक सामने कोल्हू है जहां पुतले लगा कर दर्शाया गया है की कैदी कैसे तेल निकालते थे। हर कैदी का एक निश्चित कोटा होता था।
वीर सावरकर की कोठरी में पाँव रखते ही मैं बहुत भावुक हो उठा, वीर सावरकर की वीरता के किस्से तो बहुत सुने थे की कैसे वो रोजाना कोल्हू से तैल निकालने की सज़ा भुगता करते थे और कैसे उनके हाथों को बेड़ियाँ से बांध कर दीवार पर उल्टा खड़ा कर दिया जाता था ताकि वो किसी से भी बात न कर सके।
वीर सावरकर की कोठरी में उनका एक चित्र टंगा है और उस पर पुष्प माला लटकी हुई है। वीर सावरकर की विलक्षण बुद्धि का आभास इसी बात से हो जाता है के अपने दस वर्षों के कारावास के दौरान उन्होने भारत माता की शान में कई कविताएं लिखी, वो इन पंक्तियों को कोयले से दीवार पर लिखते थे और फिर उनको कंठस्थ कर लेते थे। तीरथों के महा तीर्थ सेल्यूलर जैल एक वंदनिए भूमि है और जिसके महत्व को हमे कभी भी विस्मृत नहीं करना है अपितु ये हमारा कर्तव्य है के हम आने वाली नस्लों को इन महान क्रांतिकारियों के विषय में बताते रहें और देशभक्ति की लौ को कभी भी बुझने न दें।
आज उनकी जन्म जयंती पर ऋणी राष्ट्र की ओर से उनको शत शत नमन।
जय हिन्द।