भारत की ओर से आज एवेरेस्ट फ़तेह करने वाले पहले दल के सदस्य पद्म भूषण, पद्म श्री व अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित मेजर हरिपाल सिंह अहलूवालिया जी का जन्म दिवस है। आज वो 83 वर्ष के हो गए हैं। मेजर साहब का जन्म आज ही के दिन यानि की 6 नवंबर 1936 को अविभाजित पंजाब के सियालकोट में हुआ था। दिल्ली के वसंत कुंज इलाके में बने स्पाइनल इंजरी हॉस्पिटल के वो चेयरमैन हैं। इस अस्पताल की स्थापना उन्होंने ही की थी।
आप समझ सकते हैं कि मई 1965 को जब भारत द्वारा पहली बार चोटी फ़तेह करने की ख़बर का जो आनंद आया होगा यकीनन, वो अलग ही रहा होगा।
1965 में भारत एवेरेस्ट फ़तेह करने वाला विश्व का चौथा देश बन गया. ये हम सभी के लिए गौरव का क्षण बन गया. इस दल में कुल नौ सदस्य थे और सभी शिखर चढ़ गए, ये भी एक रिकॉर्ड बना।
ये तो आप सभी को ज्ञात ही है के माउंट एवेरेस्ट विश्व का सबसे ऊँचा शिखर है जिसकी ऊंचाई 8848 मीटर यानि की 29,002 फीट है. इसको नेपाली भाषा में सागरमाथा (अर्थात स्वर्ग का शीर्ष) और तिब्बत भाषा में चोमूलंगमा (अर्थात पर्वतों की रानी) कहा जाता है. माउंट एवेरेस्ट नेपाल और चीनी सीमा पर है.
वर्ष 1996 में मेजर अहलुवालिया द्वारा लिखी गयी एक पुस्तक मेरे हाथ लगी जिसका शीर्षक था “Higher Than Everest” इसमें उनके एवेरेस्ट फ़तेह करने की पूरी कहानी को बहुत ही रोचक तरीके से बताया गया है. तभी से मैं इनका मुरीद हो गया, ये पुस्तक 1973 में आई थी और इसका प्राक्कथन तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी ने लिखा था.
मई 1965 में मेजर अहलुवालिया ने एवरेस्ट फतेह किया और सितंबर 1965 में उन्हें भारत पाकिस्तान युद्ध में शामिल होने का आदेश प्राप्त हो गया। अपनी जांबाजी का प्रदर्शन करते हुए उन्होनें दुश्मन से जमकर लोहा लिया। पर अचानक दुश्मन की एक गोली उनकी रीढ़ की हड्डी पर आ लगी जिसकी वजह से उस दिन से लेकर आज तक उनको व्हील चेयर का सहारा लेना पड़ता है। अपनी ज़िंदादिली और साहस के दम पर उन्होनें न केवल इस चुनौती को स्वीकार किया बल्कि दिल्ली के वसंत कुंज में इंडियन स्पाइन इंजरी हॉस्पिटल की स्थापना की जहाँ ऐसे मरीजों का इलाज किया जाता है। अपनी इसी ज़िंदादिली और साहसिक जज़्बे की वजह से उनको ‘पद्म भूषण’, ‘पद्म श्री’ और ‘अर्जुन अवार्ड’ से नवाजा जा चुका है। वर्ष 2015 में इनसे पहली मुलाकात हुई और उसके बाद तो कई बार हो चुकी है. इनकी Higher Than Everest का नवीन संस्करण छपा है जिसमे इन्होने अपनी सिल्क रूट की यात्रा को भी शामिल कर लिया है. ये पुस्तक किसी ग्रन्थ से कम नहीं है हर युवा को इस पुस्तक को पढना चाहिए और इससे प्रेरणा लेनी चाहिए.
अपने साहसिक कार्यों और अद्मय साहस की वजह से मेजर अहलुवालिया न केवल मेरे बल्कि हर भारतीय के लिए एक आदर्श हैं। आज उनके जन्मदिन यही कामना है कि ईश्वर उन्हें दीर्घायु करें व स्वस्थ जीवन प्रदान करें।