आज हॉकी के महानतम खिलाड़ियों में से एक श्री बलबीर सिंह सीनियर की जन्म जयंती है।
बलबीर सिंह साहब ने कई सारे मुकाबलों में भारत का नाम रोशन किया है उन्हें भारत के सर्वश्रेठ सेंटर फॉरवर्ड के रूप में जाना जाता है।
लन्दन-1948, हेलसिंकी-1952 और मेलबोर्न-1956 के तीनों ओलिंपिक में भारत को हॉकी का स्वर्ण दिलवाने में बलबीर सिंह जी की सक्रिय भूमिका थी.
मैं सौभाग्यशाली हूँ कि मुझे उनका आशीर्वाद कई बार प्राप्त हुआ है, ऐसी ही एक मुलाकात के दौरान उन्होंने अपने जीवन के सबसे यादगार क्षण को याद करते हुए बताया था की वर्ष 1948 में, जब, लन्दन की धरती पर अंग्रेजों के खिलाफ फाइनल जितना अत्यंत गर्व का क्षण था. जीत के बाद तिरंगा फहराया गया और जब तिरंगा ऊपर जा रहा था उस समय लगा कि जैसे मैं भी उस तिरंगे के साथ ऊपर जा रहा हूँ।
12 अगस्त 1948 को ये मैच लन्दन के वेम्बले स्टेडियम में खेला गया था, जिसकी यादें बलबीर जी के जेहन में बिलकुल ताज़ा थीं। इस मैच का जिक्र करते हुए उनकी आँखों में जीत व् ख़ुशी की चमक साफ़ दिखाई दे रही थी. 200 वर्षों तक जिन अंग्रेजों ने भारत पर राज़ किया उन्हें उन्ही की धरती पर हराना किसी कीमती भारी भरकम सौगात से कम नहीं था. लन्दन ओलिंपिक में बलबीर जी ने कुल 8 गोल मारे थे. आज़ाद हिंदुस्तान का हॉकी में ये पहला स्वर्ण था। आप समझ सकते हैं इस जीत का हर भारतीय के दिल में एक महत्वपूर्ण स्थान है, और सदा ही रहेगा।
फिर 1952 के हेलसिंकी ओलिंपिक में बलबीर जी ने 9 गोल मारे और भारत को स्वर्ण दिलवाया, बलबीर जी ने इस मैच के फाइनल में हॉलैंड के खिलाफ 6 में से 5 गोल दाग कर न केवल इतिहास रच दिया, बल्कि गिनिस बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड में अपना नाम अर्जित करवा लिया। 1956 के मेलबोर्न ओलिंपिक में भी भारत को हॉकी स्वर्ण दिलवाने में इनकी अग्रणी भूमिका रही, मेलबोर्न ओलंपिक्स इन्होने कुल 5 गोल मारे। आजादी के बाद भारतीय हॉकी को 6 में से 5 स्वर्ण दिलवाने में बलबीर सिंह जी ने अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया. 1957 में तत्कालीन राष्ट्रपति डाक्टर राजेन्द्र प्रसाद के हाथों “पदम् श्री” हासिल करने वाले बलबीर जी देश के पहले ऐसे खिलाडी बने जिन्हें ये सम्मान प्राप्त हुआ।
एक और घटना यहाँ बताने वाली है की जब 1975 में हॉकी विश्व कप (कुवालालामपुर) के लिए बलबीर सिंह जी कोच के तौर पर चुनाव हुआ तो इन्होने कैसे जी जान से टीम को तैयार किया और देश ने अपना आज तक का इकलौता हॉकी विश्व कप में स्वर्ण पदक जीता।
जब टूर्नामेंट की तैयारी चल रही थी उसी दौरान बलबीर सिंह के पिता जी का देहांत हो गया इनके पिता जी स्वर्गीय दलीप सिंह जी एक स्वतन्त्रा सेनानी रहे हैं। बलबीर सिंह सीनियर ने कैंप से केवल आधे दिन की छुट्टी ली और पिता जी के क्रियाक्रम से निवृत हो कर तुरंत टीम को तैयार करने में जुट गए। इसी दौरान इनकी पत्नी को ब्रेन हैमरेज हो गया पर ये अस्पताल केवल रात में ही जाते थे, जबकि दिन में पुरे समय टीम को ट्रेनिंग दी जाती। ऐसी लगन और मेहनत और जज़्बे को तो ईश्वर भी सम्मान देंगे और हुआ भी ऐसा ही, बलबीर जी का त्याग रंग लाया और भारत ने 1975 के हॉकी विश्व कप जीत अपनी जीत का परचम फेहरा दिया।
वर्ष 2015 में इन्हें भारतीय हॉकी फेडरेशन ने लाइफ टीम अचिवेमेंट अवार्ड से सम्मानित करते हुए 30 लाख का चेक दिया जिसे इन्होने बड़ी विनम्रता से ठुकरा दिया और कहाँ के इस राशि का इस्तेमाल भारत में हॉकी के विकास के लिए लगाया जाए. ऐसे संत आज के समाज में कम ही देखने को मिलते हैं।
सबसे ज्यादा ख़ुशी तब हुई जब 2012 में लन्दन ओलंपिक्स के 116 वर्षों की यात्रा के 16 सर्वश्रेठ खिलाडियों की सूची में बलबीर सिंह जी को शुमार किया गया, न केवल भारत बल्कि एशिया से वो एक मात्र खिलाडी थे जो इस सूची में अपना स्थान बना सके। अभी तक उनकी तीन किताबें भी आ चुकी हैं जिसमें से गोल्डन गोल का हिंदी संस्करण जल्द ही आप लोगों को पढने को मिलेगा। बलबीर सिंह जी का जीवन हम सभी के लिए प्रेरणा का स्त्रोत है और हमें निरंतर आगे बढ़ने की शक्ति देता है और ये भी सिखाता है की देश से बढ़ कर कुछ नहीं होता। इनका एक ही सपना था कि भारत ओलंपिक्स हॉकी में फिर कोई पदक ले कर आए जिसे इस वर्ष भारतीय हॉकी टीम ने वर्षो बाद आखिरकार पूरा कर ही दिया।
आज बलबीर सिंह साहब की जन्मजयंती पर उन्हें शत शत नमन। जय हिंद।