तमिलनाडु वृहदेश्वर मंदिर!

हमें गर्व होना चाहिए अपनी समृद्ध कला और संस्कृति पर, जहां सदियों पहले दुनिया जब विषयों पर ज्ञान एकत्रित करने के लिए संघर्ष कर रही थी, वही अपने देश में अद्भुत कला सरंचनाओं का निर्माण हो रहा था।

इस मन्दिर का निर्माण 11वीं शताब्दी में राजा राज चोल प्रथम ने करवाया। यूनेस्को विश्व धरोहर में शामिल ये मंदिर विश्व का पहला और एकमात्र ऐसा मंदिर है जिसके निर्माण में ग्रेनाइट का इस्तेमाल इतनी विशाल मात्रा में किया गया है। ये मंदिर अपनी भव्यता, वास्तु शिल्प एवं उत्कृष्ट कला डिज़ाइन की वजह से सम्पूर्ण विश्व में प्रसिद्ध है।

तमिलनाडु के तंजौर में बना वृहदेश्वर मंदिर आज भी शान के साथ खड़ा हो कर हमें अपने अतीत पर गर्व करते रहने को प्रेरित करता है। इसके गर्भ गृह में भोलेनाथ एक विशाल शिवलिंग के रूप में विराजे हुए हैं। इसी प्राँगण में नंदी जी की विशाल प्रतिमा है साथ ही कर्तिकेय भगवान, श्री गणेश जी एवं माता पार्वती को समर्पित मंदिर भी हैं।

आइए आपको इस मंदिर से जुड़े कुछ तथ्यों से अवगत करवाता हूँ:-

1. सम्पूर्ण मंदिर का निर्माण इंटर लॉकिंग तरीके से किया गया है, यानि कि एक पत्थर को दूसरे पत्थर में फंसा कर सेट किया गया और कहीं सीमेंट इत्यादि का इस्तेमाल नही किया गया। ये ढाँचा इतना मजबूत है कि पिछले 1000 वर्षों में करीब 6 भूकंपों को भी आराम से झेल गया।

2. मंदिर के मुख्य भाग की ऊंचाई 216 फ़ीट है जो उस ज़माने में कहीं देखने को नही मिली और इसीलिए उस ज़माने के सबसे बड़ा मंदिर माना गया।

3. मंदिर निर्माण में 130000 टन ग्रेनाइट का इस्तेमाल किया जिसे 60 किलोमीटर दूर से 3000 हाथियों का इस्तेमाल कर लाया गया।

4. मंदिर के निर्माण में नींव के लिए खुदाई नही की गई यानि कि धरती की सतह से ही इसका निर्माण शुरू किया गया।

5. मंदिर के शिखर पर बने कुम्भकम का वजन 80 टन है जिसे एक सिंगल चट्टान से तराश कर बनाया गया है और इसे मंदिर के शिखर पर स्थापित करने के लिए लगभग 6 किलोमीटर लंबा एक रैंप तैयार किया गया। उस समय जब इंजीनियरिंग नही थी तो भला भारत के उच्च कोटि के निर्माताओं ने कैसे इस अद्भुत कला के उत्कृष्ट नमूने का निर्माण किया।

गर्व कीजिये अपनी विरासत, कला, ज्ञान और संस्कृति एवं सनातन धर्म पर जो चिर काल से हमें नित नई राह दिखला रहा है। जय हिंद, जय भोलेनाथ।

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