कारगिल विजय दिवस में अब केवल चंद ही रोज़ बचे हैं। इस बार कुछ विशेष है क्योंकि इस बार कारगिल विजय के 20 वर्ष पूरे हो रहे हैं। दुनिया में आज तक कहीं ऐसा युद्ध नही हुआ जिसे 16000 फ़ीट की ऊंचाई पर, बर्फीली हवाओं (जहाँ तापमान शून्य से 16 डिग्री नीचे तक पहुंच गया था) के बीच नंगे पहाड़ों में लड़ा गया जहां बहुत से स्थानों पर सर छुपाने की जगह भी नसीब नही थी। नीचे से ऊपर पहाड़ पर चढ़ो जहां से दुश्मन सीधे गोली दाग रहा था। पर ये हिन्द के सैनिक शायद अलग ही मिट्टी के बने हुए हैं। इन्हें ये विपरीत परिस्थितियां विचलित नही कर सकी और न ही इनके मजबूत हौसले को रत्ती भर भी डिगा पाई।
आज मैं 13 जम्मू कश्मीर राइफल्स के राइफलमैन (अब सूबेदार) संजय कुमार जी की गौरव गाथा बयां कर रहा हूँ, जिन्हें युद्ध के दौरान मश्कोह घाटी में पॉइंट 4875 के फ्लैट टॉप क्षेत्र से पाकिस्तानियों को खदेड़ने की जिम्मेदारी सौंपी गयी।
4 जुलाई 1999 को ही उन्होंने अपनी इस ऐतिहासिक शौर्य गाथा को स्वर्णिम अक्षरों में अपने रक्त से लिखा जो इतिहास में अमर हो गया।
संजय कुमार जी ने छाती और बाजू पर दो गोलियां खाने के बावजूद दुश्मन पर हमला नही रोका, पहले एक संगर और फिर दूसरे पर हमला कर, बिल्कुल आमने सामने की लड़ाई में दुश्मन के तीन सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया।
दुश्मन अपनी यूनिवर्सल मशीन गन छोड़ कर भाग खड़ा हुआ और इस मशीन गन से ही संजय कुमार जी ने दुश्मन पर गोलियों की बौछार कर एरिया फ्लैट टॉप पर तिरंगा फहराने में बड़ा योगदान दिया। इस अभूतपूर्व वीरता और शौर्य के प्रदर्शन के लिए उन्हें परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया। हर वर्ष 26 जनवरी की परेड में बड़ी शान के साथ वो राष्ट्रपति को सलामी देते हैं। ईश्वर भारत माता के इस शूरवीर बालक को लंबी आयु व स्वस्थ जीवन प्रदान करें।
जय हिन्द।