7 जुलाई 1999 आते आते कारगिल युद्ध निर्णायक मोड़ पर आ चुका था। नवाज़ शरीफ अमेरिका में बिल क्लिंटन की चौखट पर सजदा कर सीज फायर के लिए हाथ जोड़ रहे थे। भारत प्रत्यक्ष रूप से परिस्थितियों को अपने पक्ष करने में कामयाब हो चुका था, होता भी क्यों नही, परिस्थितियां कैसी भी हों हिन्द की सेना के सामने भला कोई टिक सकता है क्या?
7 जुलाई को हमने मश्कोह घाटी के एक महत्वपूर्ण स्थान पॉइंट 4875 पर विजयी पताका तो फेहरा दी पर इसके लिए कारगिल युद्ध के एक वीर यौद्धा कैप्टेन विक्रम बत्रा को अपने प्राणों का बलिदान देना पड़ा। 13 जम्मू कश्मीर राइफल रेजिमेंट के इस जांबाज़ सैनिक का जन्म 9 सितंबर 1974 को हिमाचल प्रदेश के पालमपुर में हुआ था।
पॉइंट 5140 पर फ़तेह हासिल करने के बाद उनके नाम का डंका देश के घर घर में बजने लगा था। टी वी पर वो किसी रॉक स्टार से कम नही लगते थे। “ये दिल मांगें मोर” का नारा उन्होंने यहीं से बुलंद किया। उनको देखते ही नौजवानों का खून उबाले मारने लगता था और हर देशवासी देश के लिए मर मिटने के लिए बेताब हो जाता था। कैप्टेन विक्रम बत्रा की आंखों में देश प्रेम का जज़्बा और कारगिल की चोटियों से दुश्मन को जल्द से जल्द खदेड़ने की छटपटाहट भी स्पष्ट तौर पर दिखाई देती थी। दुश्मन भी इनकी वीरता का लोहा मानता था और इन्हें शेरशाह के नाम से पुकारता था।
जिस दिन कैप्टेन बत्रा को अपने साथियों की मदद के लिए पॉइंट 4875 पर जाना था उन्हें तेज बुखार था पर तुरंत ही माँ दुर्गा का जय घोष बोलते ही उनमें चमत्कारिक रूप से दिव्य शक्ति का संचार हुआ और वो दुश्मन से लोहा लेने निकल पड़े। 6 और 7 जुलाई को मश्कोह घाटी में हाड़ कंपा देने वाली ठंड थी और ऊपर से बर्फ़बारी भी शुरू हो गयी थी।
आमने सामने की गुथमगुत्था की लड़ाई में उन्होंने पांच पाकिस्तानियों को मार गिराया, पर अपने एक अन्य साथी लेफ्टिनेंट नवीन अनाबेरु जो गंभीर रूप से घायल हो गए थे उनको बचाते समय एक गोली उनकी छाती पर आन लगी और वो वीरगति को प्राप्त हो गए। उनके मुख से निकलने वाले आखिरी शब्द “जय माता दी” थे। इस समय तक लगभग सम्पूर्ण टाइगर हिल हमारे कब्ज़े में वापिस आ चुका था और पॉइंट 4875 पर फ़तेह पाकिस्तान के ताबूत में अंतिम कील साबित हुआ।
इस अदम्य साहस का प्रदर्शन करने के लिए कैप्टेन विक्रम बत्रा को परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।
उनके सम्मान में इस चोटी (4875) को अब बत्रा टॉप के नाम से जाना जाता है। इसके अलावा एक आर्मी कैम्प का नाम भी बत्रा ट्रांजिट कैम्प कर दिया गया है।
दो महीने पहले मुझे इस पराक्रमी कैप्टेन विक्रम बत्रा के माता पिता के चरणों में वंदन करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। विक्रम बत्रा जी के कमरे में भी जाने का सौभाग्य मिला। अब वहां उनके जीवन से जुड़ी वस्तुएँ रख दी गयी हैं।
हम सभी देशवासी कैप्टेन विक्रम बत्रा और इनके परिवार के सदैव ऋणी रहेंगें। इस महावीर को हमारा शत शत नमन।
जय हिन्द