उपन्यास सम्राट -” मुंशी प्रेमचंद जी”

आज साहित्य जगत की एक ऐसी महान शख्सियत की जन्म जयंती है जो अपनी सादगी के लिए विख्यात थे। मैं बात कर रहा हूँ मुंशी प्रेमचंद की, जिनका असली नाम धनपत राय श्रीवास्तव था। वाराणसी के पास एक छोटा से गाँव है “लमही”, इसी स्थान पर 31 जुलाई 1880 में इस महान विभूति का जन्म हुआ था। लेखन के शुरुआती दौर में वो नवाब राय के नाम से लिखते थे, फिर कुछ समय बाद वो प्रेमचंद के नाम से लिखने लगे। अपने जीवन काल में उन्होंने करीब 250 कहानियां, 12 उपन्यास व कई सारी विदेश भाषाओं के साहित्यिक काम का हिंदी में रूपांतरण किया। उनके उल्लेखनीय व अति साधारण लेखन प्रतिभा के कारण उनको उपन्यास सम्राट भी कहा जाता है। कई वर्षों तक प्रेमचंद जी ने अध्यापन का कार्य भी किया।

ऐसा शायद ही कोई भारत वासी होगा जिसने अपने बाल्यकाल या कह सकते हैं, अपने जीवन काल में प्रेमचंद को न पढ़ा हो।

मैंने बचपन में “दो बैलों की कथा” पढ़ी जो मुझे अभी तक स्मरण है। प्रेमचंद द्वारा रचित गबन, गोदान, कर्मभूमि, निर्मला जन मानस में अत्यंत सराही गई। सत्यजीत राय ने इनकी दो कहानियों सद्गति और शतरंज के खिलाड़ी को पर्दे पर उतारा था।

पिछले वर्ष मुझे उनके गाँव “लमही” में मुझे उनकी जन्म स्थली पर नमन करने का अवसर मिला। आपके साथ कुछ तस्वीरें सांझा कर रहा हूँ। इस महान साहित्यकार को मेरा नमन।

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