आज उगते सूरज के साथ समय है नमन करने का एक ऐसे शूरवीर को जिन्हें भारतीय सेना का जिंदा शहीद माना जाता है।
मैं बात कर रहा हूँ, राइफलमैन जसवंत सिंह रावत की। आज इस शूरवीर की जन्म जयंती है। इनका जन्म 19 अगस्त 1941 उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल में हुआ था।
अब मैं आपको सन्1962 के युद्ध के दूसरे क्षेत्र नेफा ( आज का अरुणाचल प्रदेश) की ओर लेकर चलता हूँ । इस युद्धक्षेत्र
को देखने की मेरी इच्छा बचपन से ही थी । आखिरकार अक्टूबर 2014 में यहाँ जाने का सौभाग्य मिल ही गया ।
17 नवंबर,1962 को चीनी सेनाएँ जब नूरॉनाग के युद्धक्षेत्र में घुस आई तो गढ़वाल राइफल्स के राइफलमैन जसवंत सिंह रावत अपने बाकी दो साथियों लांसनायक त्रिलोक सिंह और राइफलमैन गोपाल सिंह के साथ मोर्चा संभाले रहे और चीनी आक्रमण को असफल करते रहे । दरअसल, चीनी सैनिक जब बूमला पास से घुसे तो तीनों दिशाओं से अरुणाचल में घुस गए थे ।
एक दल, जो सेला पास की तरफ से आ रहा था, उसे जसवंत सिंह और उनके साथियों ने वहीं रोक दिया । बाकी चीनी दल तो पूरा अरुणाचल पार करते हुए तेजपुर के पास तक पहुंच गए थे । इस आमने-सामने के युद्ध में चीन ने अपने 300 सैनिकों को खोया । जब चौथी बार हमला बोला तो
जसवंत सिंह जो एक मृत चीनी सैनिक की मशीन गन लेने आ । कहा जाता है कि जसवंत सिंह अकेले ही 72 घंटों तक लगातार चीनियों से लोहा लेते रहे। इस अति असाधारण वीरता के प्रदर्शन के लिए उन्हें महावीर चक्र से सम्मानित किया गया।
वह जिस कमरे में रहा करते थे, उस कमरे को एक छोटे मंदिर में तब्दील का दिया गया है । आज भी उनके कमरे की चादर रोज़ाना बदली जाती है । पाँच सैनिक आज भी उनकी सेवा में 24 घंटे तैनात रहते हैं । अब तक भारतीय सेना उनको जीवित मानकर छह प्रमोशन भी दे चुकी है। राइफल मैन से कैप्टेन बन चुके जसवंत सिंह रावत के युद्ध स्मारक पर आम सैनिक से लेकर जनरल तक सेना का जो भी जवान और अधिकारी वहां से निकलता है, उन्हें सलामी दिए बिना आगे नहीं जा सकता।
इस जगह की एक खूबी और भी है कि हर आने-जाने वाले को सेना की तरफ से चाय दी जाती है I स्वादिष्ट समोसा भी 5 रुपए का शुल्क देकर खरीदा जा सकता है । यहाँ पर कुछ बंकर आज भी भारतीय सेना द्वारा सँजोकर रखे हुए हैं। उनमें आज भी सन्1962 के युद्ध के दौरान इस्तेमाल किए गए फोन, बर्तन, रसोई, चूल्हा, हैलमेट वॉर सब सँजोकर रखा हुआ है । सभी कुछ वैसे-का-वैसा ही रखा हुआ है । हमें यह भी ज्ञात हुआ कि यहाँ सभी बंकर सिर्फ 23 दिनों में तैयार किए गए थे ।
चीनी सैनिकों ने घुसपैठ सितंबर 1962 में ही शुरू कर दी थी। उसी समय भारतीय सेना ने बंकरों का निर्माण किया था । इसमें कोई दो राय नहीं है कि चीन ने सन्1962 मे हम पर हमला करके हमारी पीठ पर छुरा घोंपा; पर युद्ध हारने की ज़िम्मेदारी भारतीय सेना की नहीं, अपितु हमारे देश के राजनैतिक पंडितों
को जाती है, जिन्होंने चीन पर अति विश्वास किया और इतनी बड़ी त्रासदी में देश को धकेल दिया । इनके जीवन पर मैंने एक वीडियो भी बनाया है, जिसका लिंक नीचे दिया गया है। समय निकाल कर अपने बच्चों को इस शूरवीर के बारे में अवश्य बताएं।